आज हम मुक्तिबोध में पढेंगे ऋषि दत्तात्रेय की कथा | Rishi Dattatreya Story in Hindi के बारे में Spiritual Leader Saint Rampal Ji Maharaj के माध्यम से.
ऋषि दत्तात्रेय की कथा | Rishi Dattatreya Story in Hindi |
ऋषि दत्तात्रेय जी ने परमात्मा कबीर जी (ऋषि मुनीन्द्र रूप से) तत्वज्ञान समझा, दीक्षा ली। सतनाम तक मिला। सारनाम उस समय किसी को नहीं देना था क्योंकि सारनाम पर उस समय ऋषियों को विश्वास नहीं होना था। कलयुग के पाँच हजार पाँच सौ पाँच वर्ष बीतने तक सार नाम, सार ज्ञान (तत्वज्ञान) गुप्त रखना था। ये दोनों कारण मुख्य रहे। जिस कारण से सारनाम नहीं दिया गया।
■ पारख के अंग की वाणी नं. 53.54 :-
गरीब, बहौरि शमशतबरेजकूं, समझाये मनसूर। शिमली पर साका हुआ, पौंहचे तखत हजूर।।53।।गरीब, शिख बंधी सतगुरु सही, चकवैं ज्ञान अमान। शीश कट्या मनसूर का, फेरि दिया जदि दान।।54।।
{इन वाणियों में भक्त मशूंर अली का वर्णन अधूरा है। इसका कुछ ज्ञान अचला के
अंग की वाणी नं. 369.371 में भी है।}
■ अचला के अंग की वाणी नं. 369.371 :-
■ अचला के अंग की वाणी मंशूर अली व बहन शिमली के विषय में :-
गरीब, सिमली कूं सतगुरू मिले, संग भाई मंशूर। प्याला उतरया अरस तें, काटे कौन कसूर।।369।।गरीब शीश कट्या मंशूर का, दोनों भुजा समेत। शूली चढ़या पुकारता, कदे न छाड़ों खेत।।370।।गरीब फूक-फाक कोयले किये, जल में दिया बहाय। अनल हक कहता चल्या, छाड़या नहीं स्वभाव।।371।।
मंशूर अली की अपनी वाणी
अगर है शौक अल्लाह से मिलने का, तो हरदम नाम लौ लगाता जा।।।।न रख रोजा, न मर भूखा, न मस्जिद जा, न कर सिजदा।वजू का तोड़ दे कूजा, शराबे नाम जाम पीता जा।।1।।पकड़ कर ईश्क की झाड़ू, साफ कर दिल के हूजरे को।दूई की धूल रख सिर पर, मूसल्ले पर उड़ाता जा।।2।।धागा तोड़ दे तसबी, किताबें डाल पानी में।मसाइक बनकर क्या करना, मजीखत को जलाता जा।।3।।कहै मन्सूर काजी से, निवाला कूफर का मत खा।अनल हक्क नाम बर हक है, यही कलमा सुनाता जा।।4।।
■ उपरोक्त वाणियों का सरलार्थ :-
परमात्मा कबीर जी अपने सिद्धांत अनुसार एक अच्छी आत्मा समशतरबेज मुसलमान को जिंदा बाबा के रूप में मिले थे। उन्हें अल्लाहू अकबर (कबीर परमात्मा) यानी अपने विषय में समझाया, सतलोक दिखाया, वापिस छोड़ा। उसके पश्चात् कबीर परमात्मा यानि जिंदा बाबा नहीं मिले। उसे केवल एक मंत्र दिया ‘‘अनल हक’’ जिसका अर्थ मुसलमान गलत करते थे कि मैं वही हूँ यानि मैं अल्लाह हूँ अर्थात् जीव ही ब्रह्म है। वह यथार्थ मंत्रा ‘‘सोहं’’ है। इसका कोई अर्थ करके स्मरण नहीं करना होता। इसको परब्रह्म (अक्षर पुरूष) का वशीकरण मंत्र मानकर जाप करना होता है। समशतरबेज परमात्मा के दिए मंत्र का नाम जाप करता था। उसका आश्रम एक शहर के बाहर बणी में था। उस नगरी के राजा की एक लड़की जिसका नाम शिमली था, समशतरबेज के ज्ञान व सिद्धि से प्रभावित होकर उनकी परम भक्त हो गई। उसने दिन-रात नाम जाप किया। सतगुरू की सेवा करने प्रतिदिन आश्रम में जाने लगी। पिता जी से आज्ञा लेकर जाती थी।
ऋषि दत्तात्रेय की कथा | Rishi Dattatreya Story in Hindi |
बेटी के साधु भाव को देखकर पिता भी उसे नहीं रोक पाया। वह प्रतिदिन सुबह तथा शाम सतगुरू जी का भोजन स्वयं बनाकर ले जाया करती थी। किसी चुगलखोर व्यक्ति ने मंशूर अली से कहा कि आपकी बहन शिमली शाम के समय आश्रम में अकेली जाती है। यह शोभा नहीं देता। नगर में आलोचना हो रही है। एक शाम को जब शिमली बहन संत जी का खाना लेकर आश्रम में गई तो भाई मंशूर गुप्त रूप से पीछे-पीछे आश्रम तक गया। दीवार के सुराख से अंदर की गतिविधि देखने लगा। लड़की ने संत को भोजन खिलाया। फिर संत जी ने ज्ञान सुनाया।
मंशूर भी ज्ञान सुन रहा था। वह जानना चाहता था कि ये दोनों क्या बातें करते हैं? क्या गतिविधि करेंगे? प्रत्येक क्रिया जो शिमली तथा संत समशतरबेज कर रहे थे तथा जो बातें कर रहे थे, ध्यानपूर्वक सुन रहा था। अन्य दिन तो आधा घंटा सत्संग करता था, उस दिन दो घण्टे सत्संग किया। मंशूर ने भी प्रत्येक वचन ध्यानपूर्वक सुना। वह तो दोष देखना
चाहता था, परंतु उस तत्वज्ञान को सुनकर कृतार्थ हो गया।
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